Thursday, February 5, 2009

दिन भी थक , रात की...
बाहों में जब सो जाता है...
निष्ठुर तारों की आग में ,
कोई दीवाना जल जाता है।
रोता है वो रात भर,...
जलन की आग मिटाने को,
धारा अश्रु में भीग जाती है,
शीतवती कहलाने को ।

सुना है ,.....
मुहब्बत में...बरबाद हुआ जाता है,
हमारी मंजिल भी मुहब्बत है...
मेरा भी जी है... जनाजा है,
जवानी की तो बात न कर,
ये मेरी है ,पर मेरी नहीं.
किसी के नाम है ............
उसकी प्यास मिटाने को,
सींचना है ...रंगना है उसको...
सुर्ख रंगीन बनाने को।

सफर अनजाना है,......
मंजिल पहचानी है...
मैं हर लम्हा जीता हूँ ,....
यही मेरी कहानी है।
सारा हाल आंसुओं ने कह दिया...
क्या बचा है ?
क्या है अब कहने को...
मौत तो मुझे थाम ही लेती...
मैं तो बह चला हूँ रहने को।

डर डर कर यूँ...
मुहब्बत की नही जाती है...
ये एक नायाब जज्बा है ...
कुर्बानी की मुक्कम्मल कहानी है...
किसी को कोमल बाहें ,....
लिपटने को...
प्यार में खो जाने को...
काश कोई मेरे साथ भी होता ...
अनंग की रात बिताने को।

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